संजय जैन बीना (मुम्बई)

*जिंदगी क्या है*
विधा: कविता


फूल बन कर,
मुस्कराना जिन्दगी है l
मुस्करा के गम,
भूलाना जिन्दगी है l
मिलकर खुश होते है,
लोग तो क्या हुआ l
मिले बिना दोस्ती,
निभाना भी जिन्दगी है।।


जिंदा दिलो की, 
आस होती है जिंदगी।
मुर्दा दिल क्या,
खाक जीते है जिंदगी।
मिलना बिछुड़ जाना, 
तो लगा रहता है ।
जीते जी मिलते 
रहना ही जिंदगी है।।


जब तक जीये 
शान से जीये जिंदगी।
अपनी बातो पर,
अटल रहकर जीये ।
बोलकर मुकर जाने,
वाले बहुत मिलते है।
क्योंकि ऐसे लोगो का ही, आजकल जमाना है।।


खुद की पहचान बनाकर,
जीने वाले कम मिलते है।
प्यार से जीने वाले भी,  
 कम मिलते है।
वर्तमान में जीने वाले, 
 जिन्दा दिल होते है।।


जिंदगी को जो, 
प्यार से जीते है।
गम होते हुए भी,
खुशी से जीते है।
ऐसे ही लोगो की,
जीने की कला को।
लोग जिंदा दिली,
इसलिए कहते है।।


संजय ने लिख दी आज, जिंदगी की हकीकत को।
क्योकिं लेखक लिखकर,
कुछ व्या कर सकता है।
खुदकी जिंदगी को पढ़ना,
खुद ही बड़ी कला है।।


 जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
19/03/2020


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