संजय जैन बीना (मुम्बई)

*विश्वास*
विधा: कविता


मुसीबत का पहाड़, 
कितना भी बड़ा हो।
पर मन का विश्वास,
उसे भेद देता है।
मुसीबतों के पहाड़ों को, 
ढह देता है।
और अपने कर्म पर,
जो भरोसा रखता है।।


सांसारिक उलझनों में,     
उलझा रहने वाला इंसान।
यदि कर्म प्रधान है तो,
सफलता से जीयेगा।
और हर कठनाईयों से
बाहर निकल आएगा।
अपने पुरूषात से।।


कहानियाँ सफलता की
इंसान ही लिखता है।
बड़े बड़े पहाड़ो को
इंसान ही गिरता है।
और उसी में से ही
हीरा को निकलता है।
ये सब काम इंसान ही
अपने हाथों से करता है।।


जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन बीना (मुम्बई)
17/03/2019


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...