*लोग बदल रहे है*
विधा : कविता
मौसम क्या बदल रहा है,
इंसान भी बदल रहा है।
सच मानो तो देश भी,
अब बदल रहा है।
अब तो रिश्ते भी,
बिक रहे देश में।
खरीदने वाला चाहिये,
चाहे हो देशी या विदेशी।।
अमन चैन से रहने वाले,
अब भाईचारा भूल रहे है।
अपने ही समाज को,
खुद ही खंडित कर रहे है।
और अनपढ़ होने का,
प्रमाण स्वंय दे रहे है।
और अपने आपको शिक्षित,
और बुध्दिमान समझ रहे है।।
शिक्षा का स्तर बहुत बड़ा है,
पर लोगो की सोच घटी है।
पहले सबकी बात करते थे,
अब मैं तक ही रह गये।
मानो भारत की सभ्यता,
हम ही मिटा रहे है।
जिससे खून के रिश्ते भी,
अब बिगड़ रहे है।
और अपास में लड़ रहे है।
जिससे स्नेह प्यार की,
संस्कृति को भूल गये है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
05/03/2020
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