पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है
अंर्तमन से टूट चुके है फिर भी मुस्कुरा रहे है
भावनाएं आहत जलकर विचार हो गये राख
जीवन बोध भूल कर ईर्ष्या पाल खो रहे साख
विस्मृत हुए जिंदगी से न भावी जीवन लक्ष्य
खुद्दारी को दे तिलांजलि भोजन भक्ष्याभक्ष्य
सुख चेन अतीत सा हुआ शांति हुई बेगानी
एक दर्द पीछा न छोड़े दूजी खड़ी परेशानी
अंदर कुढ़न भरी जिंदगी करें दिखावा बाहर
मूर्छित हुई आत्मा फिर भी बन रहे है शायर
सच्चाई न अच्छाई ईमानदार बने जा रहे है
पहन मुखौटा चेहरे पर खुद को छिपा रहे है।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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