सत्यप्रकाश पाण्डेय

मुझ ईश्वर का अस्तित्व भूलके
की है मानव ने जो भूल
प्रकृति का स्वरुप बिगाड़ कर
करली है अपने प्रतिकूल


मैंने प्रदान किये थे अतुल भोज
सुमिष्टान्न फल और मेवा
भक्ष्याभक्ष्य को अपनाया तूने
जीव जंतु का करे कलेवा


दिया मृत्यु को खुद ने आमंत्रण
अब घिरा है महामारी से
दोष दे रहा मुझ परमब्रह्म को
जब जूझ रहा बीमारी से


संस्कृति संस्कार पहचान नर
मुझ ईश्वर पर कर विश्वास
तेरी सारी विपदा हर लूंगा मैं
मेरा स्मरण कर मेरी आस


सत्य करें है आव्हान जगत से
करो न आचरण प्रतिकूल
श्रीराधे कृष्ण को हिय बसा लो
सबकुछ हो जाए अनुकूल।


युगलरूपाय नमो नमः🌹🌹🌹🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...