सत्यप्रकाश पाण्डेय

इश्क बड़ा है रोग जमीं पर, इससे बचकर रहना।
पड़कर इसके चक्कर में, केवल दुःख ही सहना।।


जिस जिसने इश्क किया,पड़ा उसे तो यहां रोना।
हाथ लगा न कुछ उसके,सब कुछ पड़ा यहां खोना।।


कब समाज ने स्वीकारा,कब यहां पर मान दिया।
सदा खून के आंसू पिये,जिल्लत का जीवन जिया।।


कौंन समझेगा दर्द तुम्हारा,कर रहे हो किसकी आस।
जिससे इश्क किया तुमने,कितना है उसका विश्वास।।


कब बफा बेबफा बन जाए,कब टूटे ये दिल तुम्हारा।
स्वार्थ भरी है दुनियां सारी,सत्य कौंन है यहां तुम्हारा।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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