सत्यप्रकाश पाण्डेय

विश्व हताहत जिससे सारा
नहीं सूझ रहा है कोई उपाय
महामारी घोषित कर दीन्ही
खो गया है सबका उत्साह
समझ के नजाकत वक्त की
लॉकडाउन कर दीन्हा देश
हर नुकसान उठाने को उद्यत
व्यक्ति मात्र का न उखड़े केश
फिर भी बनकर के अज्ञानी
क्यों लोग उड़ा रहे उपहास
क्या जब लाशों के ढ़ेर लगेंगे
मानव सभ्यता का होगा ह्रास
तब सुधरे तो क्या सुधरे तुम
जब अपनों को ही खो देंगे
अपनी ही लापरवाही से तुम
राष्ट्रीय स्वरूप ही बिगाड़ देंगे
राष्ट्रीय अध्यक्ष शत्रु नहीं जो
रखना चाहते घर मैं तुम्हें कैद
रहें सुरक्षित और स्वस्थ्य तुम
कर रहे है व्यवस्था वो वैदय
बार बार कर रहे अपील वह
मत जाओ तुम घर से बाहर
बनाओ परस्पर दूरियां तुम
नहीं रहे खतरा नहीं रहे डर।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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