सत्यप्रकाश पाण्डेय

एक भजन आज के परिपेक्ष्य में....


परमब्रह्म की भूल के सत्ता,
हुआ नर को अभिमान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


भय व्याकुल हुआ इतना मानव,
दीखें न कोई राह।
भूल गया सब धमा चौकड़ी,
बस जीवन की परवाह।।
उन्नति की डींग हांकते जाकी,
रुकती नहीं थी जवान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


धरती छोड़ चांद की राह ली,
चाहे मंगल पर आवास।
पेड़ काट बनाये कारखाने,
अंतरिक्ष में हो वास।।
पाश्चात्य सभ्यता अपना कर,
भौतिकता बनी शान।
हुआ हताहत प्रकृति के हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


अर्धनग्नता और अश्लीलता,
धर्माचरण से हीन।
फटे वसन पहन कर वे लगते,
सबकुछ होते भी दीन।।
प्रकृति आज विपरीत हुई तो,
अब पढ़ने लगा अजान।।
हुआ हताहत के प्रकृति हाथों,
अब डोल रहा ईमान।।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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