सत्यप्रकाश पाण्डेय

जिस नर के मन में,यज्ञ करने का संकल्प।
आसक्ति से रहित,कर्मबन्धन नहीं अल्प।


चेतना ज्ञान की अवस्थिति,सदाचार युक्त।
सदभावों से प्रेरित,जीवन बन्धन से मुक्त।


अर्पण प्रक्रिया ब्रह्म,हवि योग्य द्रव्य ब्रह्म।
हवन कर्ता भी ब्रह्म,फल मिले वो ब्रह्म।


यज्ञ का आचरण,या जीवन का आधार।
हर आचरण यज्ञ,न हो आसक्ति अहंकार।


संयम की अग्नि,हों इंद्रियों की समिधाएं।
स्वार्थ से परे रहें,निश्चय पवित्र हो जाएं।


गीता में श्रीकृष्ण,समझाएं यज्ञ स्वरूप।
कृपा करो सत्य पै,समझे जीवन रूप।


श्रीकृष्णाय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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