सत्यप्रकाश पाण्डेय

इश्क ने जलाया इस कदर कि राख हो गये
देखे थे जो सपने वह जलकर खाक हो गये


तुम्हारी सूरत ने लुभाया हम पास आते गये
तुमको याद रखा और सबको हम भुलाते गये


समझकर बफा खुशियां तुम पर लुटाई हमने
करोगी बेबफाई न सोच थी नहीं थे ऐसे सपने


इश्क ईश्वर है रब है खुदा और न जाने है क्या
कर बैठे बिना समझे इश्क के मायने है क्या


मत करना कोई इश्क वरना शलभ बन जलेगा
पछतायेगा सत्य और जीवन भर वह खलेगा।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511