सत्यप्रकाश पाण्डेय

कौंन है वो......................


सदभावों की वो ज्योति जलाती,
खुद मिटकर वह संसार सजाती।
सहकर के सारे दुःख दुनियां के,
घर उपवन को हरपल महकाती।।
कौंन है वो .........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


नित आशाओं के दीप जलाती,
वो कल्पनाओं के महल बनाती।
हार न मानूँगी मैं जीवन पथ में,
हर उलझन से वह टकरा जाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


मुसीबतों से वह जब घिर जाती,
आंसुओं में ही दुःख सह जाती।
उन्मुक्त सदा वो मंजिल पाने को,
रवि बनकर के वह राह दिखाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


उठती गिरती वो लहरों की भाँती,
कभी प्रकटती वो कभी खो जाती।
मिटते उभरते वेदनाओं के स्वर,
पल पल आशा के दीप जलाती।।
कौंन है वो.........
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


बन सरोज कीचड़ में खिल जाती,
सुरभि बनकर जग में घुल जाती।
खोलकर पंख हौसले के वह तो,
नित नित नवल इतिहास रचाती।।
कौंन है वो............
वो नारी है बस,चलती ही जाती।।


त्याग तपस्या की अदम्य विभूति,
है सृष्टि की अवर्चनीय खूबसूरती।
सतत प्रवाहिनी स्रोतस्विनी सी,
विधु के मनोयोग की सौम्य मूर्ती।।
कौंन है वो............
वो नारी है बस,निशदिन चलती।।



सत्यप्रकाश पाण्डेय


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