भाव के भूखे है प्रभु
भाव ही उन्हें स्वीकार है
भाव से अर्पण जो करो
तो भवसागर भी पार है
छोड़कर दुविधाएं सभी
भजो भाव से भगवान को
मिट जायेंगी बाधाएं
तुम पाओगे अंजाम को
प्राणी मात्र का आश्रय
वह जग का आधार है
उसके शिवाय कुछ भी
नहीं जगत में सार है
राग द्वेष तज मानव
तू करले ईश्वर से प्यार
शुद्ध होंगी भावनाएं
फिर धरा लगे परिवार।
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सत्यप्रकाश पाण्डेय
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