सीमा शुक्ला अयोध्या

फागुन आया


धरती का नवल साज,
होता शुभ सकल काज।
कोयल वन गान करे,
तितली रसपान करे।
अलि कलिका चूम चूम, 
मन विभोर झूम झूम।


प्रणय गीत गाता है।
तब फागुन आता है।
*****
रंग उठा है तन मन, 
पुलकित है  अंतर्मन।
घुल जाये सप्तरंग,
भीग उठे अंग-अंग।
मिटता मन से  मलाल,
उड़ता घर घर गुलाल।


तन-मन हर्षाता है।
तब फागुन आता है।
****
फगुआ का राग उठे ,
विरहा की आग उठे।
मन मे जागी  उमंग,
नभ मे उड़ती पतंग।
हाथों मे हाथ मिले,
अपनो का साथ मिले।


मन ये मुस्काता है।
तब फागुन आता है।
****
मंद महक है बयार,
रंगो की है फुहार।
रंग भरें पिचकारी,
बाल करें किलकारी।
नयन भरे है सपने,
दूर बसे जो अपने।


मन उन्हे बुलाता है।
तब फागुन आता है।
****
बाजै ढोलक मृदंग,
प्रीति बैर एक  संग,
खिले सुमन है उपवन,
जग जैसे है मधुबन।
धरती का नीलगगन,
हो जाये आज मिलन।


स्वप्न मन  सजाता है।
तब फागुन आता है।


 
सीमा शुक्ला अयोध्या


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