भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।
वेदना का अंत खुशियों
का हृदय उद्गार होगा।
है निमिष भर की तपिस ये
जल रहा पथ पांव हैं।
किन्तु कर विश्वास आगे,
सुखभरी तरु छांव है।
फिर सुगंधी ये पवन,
महका हुआ संसार होगा।
वेदना का अंत .......
नेह के घनघोर बादल,
प्रीत की बरसात होगी
सो सके तू चैन से फिर से
हंसी ओ रात होगी।
फिर मधुर संगीत सुन
झंकृत हृदय का तार होगा।
वेदना का अंत .........
कोटिश:कर हैं उठे दिन
रात करते हैं दुआये।
दूर हो गमगीनियां तू,
फिर मुदित मन मुस्कुराये
फिर धरा पर एक नवयुग
का नया अवतार होगा
वेदना का अंत ......
फिर बहेंगी स्वच्छ शीतल,
ये सरस पुरवाईयां,
फिर न घेरेंगी तुम्हें ये
गम़जदा तन्हाईयां।
कवि हृदय की लेखनी में
फिर सरस श्रृंगार होगा।
वेदना का अंत खुशियों
का हृदय उद्गार होगा।
भारती मत रो चमन फ़िर
गुलशनें गुलजार होगा।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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