सीमा शुक्ला अयोध्या।

जिन्दगी के सफर मे हमेशा, देखते नित नयी हम कहानी।
है लवो पर कभी कुछ शिकायत,है कभी जिन्दगी ये सुहानी।
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जो न मिलता है चाहत मे उसकी, जो मिला है न उसकी कदर है,
इस तरह खोने पाने की धुन मे,खो चुके है बहुत ये जवानी
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प्रेम सच्चा वही है चिरंतन,साथ दे जो निलय से प्रलय मे,
चार पल की मुलाकात को क्या,हम कहे है मुहब्बत रूहानी।
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हम गये जो कहीं बीच महफिल,मिल गया साथ अपनो के ये  दिल,
चंद पल की मुलाकात मे हम,छोड आते है अपनी निशानी।
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जन्म इंसान लेता है घर मे,कर्म से नाम होता है जग मे,
सूर तुलसी कबीरा जगत मे,कर्म से बन गये गूढ ज्ञानी।
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दर्द मे भी सदा हंसते रहना,हर मुसीबत को हिम्मत से सहना,
होके मायूस चुप बैठ 'सीमा',तुम गंवाना न यू जिन्दगानी ।
 सीमा शुक्ला अयोध्या।


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