आंखे
गम और खुशी का भेद जानती हैं ये आंखे ।
इस पार से उस पार झांकती हैं ये आंखे ।
जो दृश्य हो नयनाभिराम इस जहान में,
उस दृश्य को अपलक हो ताकती हैं ये आंखे ।
चेहरे पे किसी के कभी रुक जाती हैं आँखे ।
होकर के शर्मसार भी झुक जाती हैं आँखे ।
हर शर्म हया छोड़ के होकर के वेनकाब,
करने को सामना भी तो उठ जाती हैं आँखे ।
दिल की तड़प व दर्द बताती हैं ये आंखे ।
रातों को जागकर के सताती है ये आंखे ।
एक ही नजर में दिल का बुरा हाल बना दें,
सीधे जिगर पे तीर चलाती है ये आंखे ।
ख्वामोशी में भी बात को करती हैं ये आंखे
आँसू से ही वर्षात को करती हैं ये आंखे ।
चुपके से एक नजर में करके तिरछा इशारा,
दिल के सभी जज्बात बंया करती हैं आँखे ।
जग होता अन्धकार जो न होती ये आंखे ।
होता न कुछ दीदार जो न होती ये आंखे ।
कोई न बदलता यहां फिर चेहरे पे चेहरा,
होता ये कैसे प्यार जो न होती ये आंखे ।
सीमा शुक्ला अयोध्या
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