सीमा शुक्ला अयोध्या संवत 2077

नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
खड़ी है मौत राहों में,
दिखाई दे रही पल-पल।
उदासी हर तरफ फैली ,
नहीं कोई कहीं हलचल।
विकट, विकराल मंजर है,
अचंभित विश्व है सारा।
निलय में निज ससंकित है,
विषम हालात से हारा।
बहाते नीर दृग अविरल,
इसे उल्लास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे........
धरा से खूब खेला है,
मनुज ले रूप दानव का।
मिला प्रतिफल विनाशक ये,
मिटा अस्तित्व मानव का।
जमीं से उस फलक तक का,
सकल विज्ञान है हारा।
न धन बल कामआया कुछ,
बना इंसान बेचारा।
न कुछ जग में असंभव है
इसे विश्वास क्या लिख दें
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास.............
क़दम पर जल रहे शोले,
सकल जग आपदा भारी।
स्वयं निज भूल से मानव,
बना वेबस है लाचारी।
किसी भी हाल में जीतें,
छिड़ा जग युद्ध है भारी।
पुनः धरती पे ले आए,
पुरातन रीति हम सारी।
शिकन है आह अधरों पर,
इसे मृदुहाश क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
सीमा शुक्ला अयोध्या।


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