नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
खड़ी है मौत राहों में,
दिखाई दे रही पल-पल।
उदासी हर तरफ फैली ,
नहीं कोई कहीं हलचल।
विकट, विकराल मंजर है,
अचंभित विश्व है सारा।
निलय में निज ससंकित है,
विषम हालात से हारा।
बहाते नीर दृग अविरल,
इसे उल्लास क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे........
धरा से खूब खेला है,
मनुज ले रूप दानव का।
मिला प्रतिफल विनाशक ये,
मिटा अस्तित्व मानव का।
जमीं से उस फलक तक का,
सकल विज्ञान है हारा।
न धन बल कामआया कुछ,
बना इंसान बेचारा।
न कुछ जग में असंभव है
इसे विश्वास क्या लिख दें
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास.............
क़दम पर जल रहे शोले,
सकल जग आपदा भारी।
स्वयं निज भूल से मानव,
बना वेबस है लाचारी।
किसी भी हाल में जीतें,
छिड़ा जग युद्ध है भारी।
पुनः धरती पे ले आए,
पुरातन रीति हम सारी।
शिकन है आह अधरों पर,
इसे मृदुहाश क्या लिख दें?
चमन वीरान सा उजड़ा,
इसे मधुमास क्या लिख दें?
नवल यह वर्ष है आया,
सुखद एहसास क्या लिख दें?
सीमा शुक्ला अयोध्या।
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सीमा शुक्ला अयोध्या संवत 2077
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