ये सुख भी नही भाया।
तडफ रही सबकी काया।
मचल रहा मन उडे कैसे
कैदी है पंछी पिंजरे जैसे।
पता चला,आजादी का मतलब।
पास नही रहे चाहे फुटी कोडी।
फिर भी घुमते बनकर नवाब।
सोचो कैसी विपदा आई।
अपने हाथो घर मे समाई।
सीख बहुत बडी देने लाई।
खिलवाड मत करो प्रकृति से भाई।
आज सभी कुछ बंद यहां पर।
देख गगन भी रोया यहां पर।
दूर से बैठा वह देख रहा है।
मालिक बनकर जो रह.रहा है।
कोप का भाजन.शायद अडे.है।
उसकी अदालत मे हम खडे.है।।
संभलना हमे हर हाल मे होगा।
वरना घर मे रहना यू पडेगा।
आओ आज भी संकल्प ले ले।
जीवन प्यारा सादगी से जी ले।।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्रीमती ममता वैरागी तिरला धार
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