हिन्दी गजल- निभाते चले गए |
हम अपनी वफा निभाते चले गए |
वो मुझसे दूरिया बढ़ाते चले गए |
शामिल था उनकी खुशी ओ गम |
मेरे वक्त वो मुंह चिढ़ाते चले गए |
प्यार के सिवा कुछ नहीं दुनिया मे |
वो आग दुश्मनी क्यो बढ़ाते चले गए|
तन्हा आना जाना मगर जरूरत सबकी |
नीसा रिश्तो ज़िंदगी मिटाते चले गए |
तन्हा रहना दोस्त जरूरी हंसी के लिए |
दिल अजीज दोस्तो दुखाते चले गए |
पसीना जरूरी दो वक्त रोटी के लिए |
चाह ज्यादा छवि खुद गिराते चले गए |
कर लो चराग रोशन अंधेरों डर जाओगे |
उम्मीदों के दिये सारे बुझाते चले गए |
तुम देवता न शैतान अकेले रह लोगे |
हर रिश्ता जरूरी कीमत सुनाते चले गए |
श्याम कुँवर भारती (राजभर )
कवि/लेखक /समाजसेवी
बोकारो झारखंड ,मोब 9955509286
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
श्याम कुँवर भारती (राजभर ) कवि/लेखक /समाजसेवी बोकारो झारखंड
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