स्नेहलता नीर रुड़की

गीत


सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
नव किसलय फूटे शाखों पर,


सिमटा-सिमटा पतझर अनंत।
1
ले हाथ तूलिका धरती के,रँगता मनभावन अंग-अंग।
अनुपम शोभा मंडित सुरम्य ,हतप्रभ विलोकता है अनंग।
पट घूँघट के कलियाँ खोलें,बह रही सुवासित पवन मंद।
खगकुल कलरव कर रहा मधुर,प्रमुदित सचराचर वृंद-वृंद।
स्वर मधुर सारिका का गूँजे,खुशियाँ छाई हैं दिग्दिगंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
2
कचनार खिला,महुआ महका,सेमल पलाश खिल गए लाल।
गुलमोहर सिंदूरी झूमे ,झूमे द्रुम-दल की डाल-डाल।
गुड़हल,गुलाब,गेंदा गमका, जूही,चंपा शत खिले फूल।
खिल गयी चमेली बेला भी,महके पीला पुष्पित बबूल।
सुषमा का वैभव लुटा रहा,दाता कुसुमाकर दयावंत ।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
3
कुसुमित फ्योंली, रक्तिम बुराँस, आह्लादित झूलें अमलतास।
चूलू ,बादाम ,खुबानी सँग ,केसरिया केसर  करे रास।
आड़ू ,पूलम ,दाड़िम, निम्बू,प्रस्फुटित  संतरे और सेब।
झींगुर के स्वर लगते  मनहर,ज्यों कोटि झनकतीं पायजेब।
मोनाल मगन हो नृत्य करें, लचकें पर्णी के वृन्त -वृन्त।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
4
आमों पर मंजरियाँ आईं,फैली मादक चहुँओर गंध।
तितलियाँ मस्त हो इठलातीं,अलि प्रेम- मगन तट तोड़ बंध।
सरसों  के पीले हाथ हुए,गेंहूँ की बालें हेम-वर्ण ।
मूली ,रहिला खिल गयी मटर ,हैं ओस-नहाए हरित- पर्ण।
 वासंती सुषमा की छवियाँ,अद्भुत आकर्षक कलावंत।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।
5
पादप वल्लरियाँ पुष्प वृंत,वसुधा के सुंदर कंठहार।
कामिनी धरा की छवि निरखे,देवों दिग्पालों की कतार।
मकरंद भरी सुमनांजलियाँ,संदल साँसों में भरे भोर।
फागुन रंगों की पिचकारी,से रँग बरसाता है विभोर।।
जग झूम रहा अब मस्ती में,हैं नहीं अछूते साधु-संत।।
सब ऋतुओं से न्यारा-
प्यारा ,आया फिर मतवाला बसंत।


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