वो मेरे दिल के फूल खिला जाती थी
वो जब भी मेरी गली में आ जाती थी
दिल खुद से ही ग़ज़ल कह जाता था
वह जब मुझे देख कर मुस्कुराती थी
जब भी तन्हा होता जाने क्या सोचता
उसकी खुशबू मुझे महका जाती थी
उसकी झलक पाने छत पर बैठना मेरा
जाने वो कब कहां से वह आ जाती थी
उसको भी पता थी मेरे दिल की तड़प
याद मेरी भी उसको बहुत तड़पाती थी
गली से गुजरती क्या ढूंढती थी ऊपर
मुझे देखकर बाग बाग हो जाती थी
एक लड़की नाम मोहब्बत था उसका
वो मेरी रातों को दिन कर जाती थी
क्या ढूंढ रखी थी जगह तन्हा सी उसने
देखो मेरे दिल में आराम फरमाती थी
मैं उसकी फिक्र में घुला सा जाता था
वो मेरी लिए आंखों में रात बिताती थी
वह जन्नत की एक हूर सी थी मेरे लिए
हां वह थी मेरे सपनों की शहजादी थी
सुबोध कुमार
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें