कविता-
ज़िन्दगी इक नदी...
जिंदगी इक नदी है
अनवरत प्रवाह
किए बिना परवाह
आगे बढ़ते ही जाना
वापस कभी ना आना
'सावन' समय के साथ
कदमताल मिलाना
धार से अलग हो
खेतों में जाना
लोक कल्याण हेतु
खुद को मिटाना
यही तो नदी है
यही जिंदगी है
कहीं है सुखद- शांति
कहीं अशांति- क्रांति
कहीं है पारदर्शिता
तो कहीं भ्रम- भ्रांति
मन से गुनो
नदी से सुनो-
मृत्यु की निनाद
और जीवन का संगीत
करो फूलों से, शूलों से,
पत्थरों से प्रीत
वह जीवन है नीरस
जहां आंसू नहीं
जहां समस्याएं नहीं
जहां आलोचक नहीं
है दुख में ही गति
है दुख में प्रगति
सोया है सुख का सागर
ओढकर दुख का तरंग
यही है जीवन का रंग
दुख हो या सुख
सदा गुनगुनाना
सदा मुस्कुराना
आगे बढ़ते ही जाना
यही तो नदी है
यही जिंदगी है
सुनील चौरसिया 'सावन',
प्रवक्ता, केंद्रीय विद्यालय टेंगा वैली,
अरुणाचल प्रदेश
9044974084, 8414015182
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