कविता:-
*"सपने हो साकार"*
"सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।
बस सोचती रही जीवन में,
कैसे-सपने हो -
साथी यहाँ साकार।
रात-दिन लगी रही ,
घर के कामो में-
टूटा नहीं विश्वास।
जब भी मिलता समय,
ढूँढे मन जीवन मे-
कैसे-सपने हो साकार?
किताबें ही दें सकती साथी,
मेरे जीवन को-
नव आकार।
पढ़ना नहीं छोडूगी साथी,
जब तक मिलेगी न मज़िल-
हो न सपने साकार।
सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनील कुमार गुप्ता
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें