सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
          *"मन"*
"मन की पीड़ा को साथी,
जग में मन ही जाने।
कोई न जगत में तेरा,
जो इसको पहचाने।।
सच्चे संबंधों को भी,
कोई अपना न माने।
स्वार्थ की धरा पर तो,
हर कोई पहचाने।।
मैं-ही-मैं बसा मन जो,
अपनत्व को न माने।
जीवन है-अनमोल यहाँ,
इसे भी न पहचाने।।
दे शांति तन-मन जो यहाँ,
ऐसा गीत न जाने।
भक्ति रस में डूबे तन मन,
तब प्रभु को पहचाने।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupt
          22-03-2020


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