सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
       *"मंज़िल"*
"मंज़िल नहीं अपनी तो ये,
इससे भी दूर जाना हैं।
थकना नहीं जीवन में तुम,
अभी बहुत कुछ पाना हैं।।
कह सके मन की बातें वो,
ऐसा साथी पाना हैं।
जीवन साथी सने साथी,
ऐसे कदम बढ़ना है।।
टूटे न डोर प्रीत की,
इतनी प्रीत बढ़ना है।
महके ख़ुशियों की फुलवारी,
इतना संग निभाना है।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता

ःःःःःःःःःःःःःःःः           
           24-03-2020


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