सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
        *"विपद्रव"*
"शांत जल में मारोगे पत्थर, 
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।
ऐसे ही साथी जीवन में,
स्वार्थ सिद्धि को-
होते रहते विपद्रव।
राजनीति में भी होती रहती हलचल,
सार्थक मुद्दो पर भी-
होती राजनीति होते विपद्रव।
शांत प्रदर्शनों में भी,
घुस आते अजनबी-
करते बदनाम होते विपद्रव।
दूर रहना असमाजिक तत्वों से,
तभी रहोगे सुरक्षित-
होगे नहीं विपद्रव।
देना होगा साथ सत्य का,
तभी रूकेगे-
उपद्रव-विपद्रव।
शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।।"     


सुनील कुमार गुप्ता       12-03-2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...