कविता:-
*"विपद्रव"*
"शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।
ऐसे ही साथी जीवन में,
स्वार्थ सिद्धि को-
होते रहते विपद्रव।
राजनीति में भी होती रहती हलचल,
सार्थक मुद्दो पर भी-
होती राजनीति होते विपद्रव।
शांत प्रदर्शनों में भी,
घुस आते अजनबी-
करते बदनाम होते विपद्रव।
दूर रहना असमाजिक तत्वों से,
तभी रहोगे सुरक्षित-
होगे नहीं विपद्रव।
देना होगा साथ सत्य का,
तभी रूकेगे-
उपद्रव-विपद्रव।
शांत जल में मारोगे पत्थर,
होगी हलचल-
जलचर करेंगें विपद्रव।।"
सुनील कुमार गुप्ता 12-03-2020
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