कविता:-
*"दर्पण"*
"जीवन सत्य को समर्पण,
सत्य सद्कर्मो को अर्पण-
मन एक दर्पण।
झूठ फरेब सब इस धरा पर,
बन रहे जीवन के -
आडम्बर।
यथार्थ जीवन में भूले सत्य,
स्वार्थ में जीवन-
अपना समर्पण।
बीत गया जीवन अपनों में,
बीता जीवन सपनों में-
मन एक दर्पण।
अपनत्व की धरती पर,
मिला नहीं संग-
मन एक दर्पण।
जीवन सत्य को समर्पण,
सत्य सद्कर्मो को अर्पण-
मन एक दर्पण।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःः
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