सुनीता असीम

हो मुहब्बत से भरी दुनिया मगर होगी नहीं।
बिन अंधेरे से लड़ें अब तो सहर होगी नहीं।
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तब खुदा भी साथ होगा जब भरोसा खुद पे' हो।
गर नहीं विश्वास तो उसकी नज़र होगी नहीं।
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हो रहा इम्तिहान अपना सोच लो ऐसा सभी।
बात सोचे यूँ बिना अपनी गुजर होगी नहीं।
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जंग जीते हैं कई भारत के वासी हम सदा।
इस महामारी से जीते बिन बसर होगी नहीं।
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जब खुदा भी साथ औ राजा भी अपने साथ हैं।
वक्त पे ऐसे हमें अपनी फिकर होगी नहीं।
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हाथ भी धोलो सभी कर लो नमस्ते दूर से।
रोक लेंगे गर इसे फिर ये सफर होगी नहीं।
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गर नहीं बढ़ने दिया कर तंग इसका रास्ता।
हम रहेंगे खुश तभी ये भी अमर होगी नहीं।
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सुनीता असीम
27/3/2020


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