घर घरों में मन रहा मातम रहा।
ये करोना ले रहा बस दम रहा।
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धो रहे हम हाथ बारम्बार पर।
वैद्य कहते और धोओ कम रहा।
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मास्क पहने घूमता है आदमी।
मौत के वो ख़ौफ से बेदम रहा।
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जिंदगी की जानता कीमत नहीं।
कितना बेपरवाह ये आदम रहा।
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जान जानी एक दिन कहता यही।
सामने पर रोग के पुरनम रहा।
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है परेशाँ आपका आजम बड़ा।
बाद कुछ दिन के नहीं कुछ ग़म रहा।
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आज लड़ना है करोना से हमें।
जीतना है तो लड़ो जो दम रहा।
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सुनीता असीम
19/3/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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