सुनीता असीम

घर घरों में मन रहा मातम रहा।
ये करोना ले रहा बस दम रहा।
***
धो रहे हम हाथ बारम्बार पर।
वैद्य कहते और धोओ कम रहा।
***
मास्क पहने घूमता है आदमी।
मौत के वो ख़ौफ से बेदम रहा।
***
जिंदगी की जानता कीमत नहीं।
कितना बेपरवाह ये आदम रहा।
***
जान जानी एक दिन कहता यही।
सामने पर रोग के पुरनम रहा।
***
है परेशाँ आपका आजम बड़ा।
बाद कुछ दिन के नहीं कुछ ग़म रहा।
***
आज लड़ना है करोना से हमें।
जीतना है तो लड़ो जो दम रहा।
***
सुनीता असीम
19/3/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...