सुनीता असीम

चोट दिल पे ज़रा लगी सी है।
दर्द में आज कुछ कमी सी है।
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याद उनकी चमक चमक उठती।
धूल दरपन पे कुछ ज़मी सी है।
***
ढल गया सूर्य आज जल्दी से।
साँझ भी क्यूँ रुकी रुकी सी है।
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है हवा में यूँ फैलती सरगम।
ब्रज में बजती बांसुरी सी है।
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खुद को महसूस कर रही तन्हा।
मुझको उनकी लगी कमी सी है।
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सिर्फ आँखें ही कर रही बातें।
ये जुबाँ मुँह में बस थमी सी है।
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मामला प्यार का बढ़ा जबसे।
की हवा ने भी दिल्लगी सी है।
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सुनीता असीम
14/3/2020


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