मुहब्बत की राहों में छाले हुए हैं।
ये दिल मुश्किलों से संभाले हुए हैं।
***
न आए नजर प्यार मेरा सजन को।
कि हम तो यहां दिल निकाले हुए हैं।
***
किया इश्क मैंने न चोरी कोई की।
वो इल्जाम हमपे लगाए हुए हैं।
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मुझे देखते हैं नज़र टेढ़ी करके।
मेरा अक्स कैसा बनाए हुए हैं।
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बिगड़ती चली जा रही है हवा भी।
बिना ज्ञान वाले रिसाले हुए हैं।
***
सुनीता असीम
12/3/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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