चोट लगती है मुहब्बत में किसी दिल को जो।
आशिकी के ऐसे अंजाम पे रोना आया।
***
रोज बढ़ती ही रही सिर्फ ये महंगाई है।
चीजों के बढ़ते रहे दाम पे रोना आया।
***
रोशनी सबको नहीं जो दे सके दुनिया में।
उस सितारों से भरे बाम पे रोना आया।
***
आपने कर्म किए थे ऐसे दुनिया में आ।
आपके नाम ए बदनाम पे रोना आया।
***
बस बुराई की सभी की ही जमाने में तुमने।
हर तुम्हारे जो किए काम पे रोना आया।
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सुनीता असीम
2/3/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम आगरा
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