सभी की फिक्र वाला आदमी हूँ।
न मतलब से भरा सा आदमी हूँ।
***
नहीं रुतबा मेरा तुम तौलना बस।
बड़ा सीधा व सच्चा आदमी हूँ।
***
कोई भी है नहीं मेरा जहाँ में।
रहा इससे मैं तन्हा आदमी हूँ।
***
मुहब्बत ही रहे मिट्टी में जिसकी।
मैं ऐसे इक वतन का आदमी हूँ।
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यकीं मुझको नहीं है तोड़ने में।
मैं रिश्ते बस बनाता आदमी हूँ।
***
सुनीता असीम
20/3/2020
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुनीता असीम
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