दोहे
जो दाता इस जगत का उसे चढ़ायें नोट।
भक्ति नहीं पैसा बड़ा चिन्तन में है खोट।
छोड़ राम मंदिर चले अब सांई के द्वार।
ईश्वर के मानव रचे नये नये अवतार।
गहन प्रेम विश्वास बिन पूजा है बेकार।
अक्षत चंदन आरती आडम्बर व्यापार।
ब्रम्हण के घर जन्म पर कर्म न विप्र समान।
आलस लोभ अपवित्रता नहिं विद्या नहिं ज्ञान।
दस इन्द्रिय संग तन दिया प्रभु की कृपा महान।
फिर भी मांगें रात दिन धन सम्पत्ति का दान।
घर में भूंखे मातु पितु प्रतिमा छप्पन भोग।
चिन्तन दूषित हो गया लोभ स्वार्थ का रोग।
मक्खी उड़ें प्रसाद पर गन्दे हाथ उठाय।
बासी घटिया माल सब ऊंचे भाव बिकाय।
जो प्रसाद प्रभु के चरण लौटि दुकानन आय।
जूंठन बेचें रात दिन ताजा माल बताय।
सत्य शान्ति शुचिता क्षमा धारण ध्यान अक्रोध।
चोरी नहिं इन्द्रिय दमन बुधि धर्म के बोध।
लक्षण एक न धर्म के कर्म धर्म के नायं।
आडम्बर की आंड़ में वे धार्मिक कहलायं।
जाति पांति अरु जन्म कुल नहीं धर्म आधार।
पथ है यह चलकर मनुज पहुंचे प्रभु के द्वार।
सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक जेठरा खमरिया लखीमपुर-खीरी
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
सुरेन्द्र पाल मिश्र पूर्व निदेशक जेठरा खमरिया लखीमपुर-खीरी
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