सुरेंद्र सैनी बावनिवाल

रिवाज क्या है..... 


बाहर शीत अंदर जलन,
 मौसम का मिज़ाज़ क्या है. 
कोई हूक उठ रही, 
अंदर ये आवाज़ क्या है. 


वक़्त सरपट दौड़ रहा, 
क्या था कल आज क्या है. 
कुछ समूह एकसाथ, 
कुछ अलग, ये समाज क्या है. 


हर उलझन हमसे शुरू,
 समझ नहीं ये आगाज़ क्या है. 
 अपने ही देते हैं दग़ा अकसर,
  जाने ये रिवाज क्या है. 


पहले मतभेद, फिर मनभेद, 
आखिर इस मर्ज़ का ईलाज क्या है. 
वही दिनचर्या ज़िम्मेदारी चलाने की, 
और अपने पास काम -काज क्या है. 


ना कली रहा, ना फूल बन सका, 
ये पलाज ^ क्या है.                     (टेसू का फूल )
हालात दबा रहे सतत अनवरत, 
जाने ये साज़ क्या है. 


मेरा हुनर देख "उड़ता "मुश्किलों में भी मुस्कुराता हूँ, 
पूछते हैं लोग ये अंदाज़ क्या है. 


 


स्वरचित एवं मौलिक रचना. 



द्वारा - सुरेंद्र सैनी बावनिवाल


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