सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

CAA का धरना..... 


एैसी आग लगी ना जाने, कितने लाल निगले हैं. 
अब भी जूं ना रेंगी, 
नेता झांके क्यों बगलें है. 


हिन्दू -मुस्लिम की शक्ल में, 
जल उठी दिल्ली. 
पता नहीं हैं कौन से पिछले, 
और कौन से अगले हैं. 


CAA,NRC का अर्थ पता नहीं,
 चले धरने को. 
या तो वो समझदार बहुत हैं, 
या फिर सब पगले हैं. 


शाहीन बाग की आड़ में, 
हो रहे कु-कृत्य भी, 
बेसुरी सी ताल पर, 
रात-दिन बज रहे तबले हैं. 


जिनसे तीन-तलाक लेते थे, 
उनको हथियार बना लिया, 
अब वो शेरनी हो गयी, 
जो कल तक रहे अबले हैं. 


सरकार क्यों बेबस हुई, 
नहीं कुछ कर सकती. 
विपक्ष सारा एक हो गया, 
हर बात में झमले हैं. 


फ्री की आदत लगी लोगों को, 
क़ानून लचर है "उड़ता ", 
ये वोट -बैंक की राजनीति 
और चलने वाले मेले हैं. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


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