कभी आओ तो सही....
वही प्यार लाओ तो सही.
तुमने वादा जो किया था,
कभी आओ तो सही.
वो एहसास फ़लक पर,
कहीं लाओ तो सही.
क्या गुजरा तेरे -मेरे दरमियाँ,
मुझे कुछ बताओ तो सही.
तेरी हर आरज़ू मेरे सर रही,
एक बार मुझे सताओ तो सही.
तेरा राज़दार बन जाऊंगा,
ना मुझसे छुपाओ तो सही.
मंजूर मुझे मरहम -ए -जख्म बनना,
वो चोट -ए -दिल दिखाओ तो सही.
माना ये शहर अंधेरों का है,
उम्मीद -ए -शब बन जाओ तो सही.
इस बेदर्द ज़माने की तवज़्ज़ो क्या,
आईने के रूबरू रह जाओ तो सही.
दिल से निकली आह शायरी "उड़ता ",
लफ़्ज़ों में ढली ग़ज़ल बन जाओ तो सही.
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
झज्जर, (हरियाणा )
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