जाना था मुझे....
दूर कहीं पहुंचना था मुझे
खुद को कहीं झोंकना था मुझे
सफ़र था बेइंतहा लम्बा
काँटों भरी पगडंडियाँ
एक -एक सदी सी सर्दियाँ
जंग लगे हालात
ना किसी का साथ
कहीं कुछ तो पीछे छूट गया है
मगर रात -दिन चलना था मुझे
कहीं पर ना रुकना था मुझे
जो दिल है एक सोच रखता है
मेरे भीतर कहीं चोट करता है.
सात आसमान छू लेने की अभिलाषा
आगे बढ़ते जाने की आशा
कुछ नहीं भूलना था मुझे
दूर कहीं पहुंचना था मुझे
उतार -चढ़ाव तो आएंगे "उड़ता ",
कामयाबी के समय में झोंकना था मुझे.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
झज्जर (हरियाणा )
📱9466865227
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