बड़ा मोहल्ला...
सदियों से रह रहे
यहीं इसी मकान में
एक छोटा सा
बड़ी इमारतों के बीच
शहर का कोई पाश इलाका
या फिर एक बड़ा मोहल्ला
यहाँ पाए सभी सम्बन्ध
जो छूट रहे हैं
भौतिकता की दौड़ में
धीरे -धीरे बिखर रहे हैं
कभी अपने रूठ रहे हैं
कुछ सपने झूठ रहे हैं
भूलते जा रहे
जीवन के सभी अनुबंध
सिमटते जा रहे हैं हम.
हम -तुम वहीं रहे
इसी मकान में "उड़ता "
ये मोहल्ला शायद और बड़ा हो गया.
✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल
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