होता नहीं अमीर....
खाली हाथ ही रहे,
बदली नहीं लकीर.
दुआ देता रह गया,
राह चलता फ़क़ीर.
कैसे होगा आगे बसर,
नैनों से गिरता नीर.
इंतज़ार में गुजर गया,
दिल से रहा मैं धीर.
तालीम तो पूरी मिली,
न मिली नौकरी अधीर.
हाल चलता उम्र -रफ्ता,
अनहोनी लगी हक़ीर^. (छोटी )
हौसलों की कमी नहीं,
पुरानी हुई तक़दीर.
रात गहरी छा गयी,
होती नहीं सवीर ^. (सुबह )
बेरंग हर होली लगे,
ख़ुश्क लगे अबीर.
कोई गलत कैसे करुँ,
गवाही ना दे ज़मीर.
तंगहाली का गरीब "उड़ता ",
कभी होता नहीं अमीर.
स्वरचित मौलिक रचना.
द्वारा - सुरेंद्र सैनी बवानीवाल "उड़ता "
झज्जर (हरियाणा )
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