सुरेंद्र सैनी बवानीवाल

जीव विज्ञान.... 


परमात्मा ने बनाई एक दुनिया. 
ये ऊँचे पहाड़, कल -कल बहती नदियाँ. 
मानव जीवन का विकास, 
हर- पल बदलती सदियाँ. 


ये जीव-विज्ञान क्या है, 
मर कर ये अक्स जाता है कहाँ?
उसके बारे में जानना था, 
यों उठा जज़्बात -ए -जोश यहाँ. 


हुआ रंगीन कैसे ये जहाँ?
दूर तक फैला आसमां. 
नहीं हाथ आया ये मौसम, 
ना रुकी रोकने से हवा. 


कैसे बढ़ी रफ़्तार हौसलों की, 
हमने संघर्ष बहुत सहा. 
खुद को ढाला है सांचे में, 
तब जाकर हुआ कुछ नया. 


सोच कर देखो ये धरा, 
चाँदनी रात, तारों भरी वसुंधरा. 
सेहरा में पिरोये मोती -तारे, 
धूप का टुकड़ा कहाँ जाकर गिरा. 


तरक्की हुई है विज्ञान से, 
ये सब तभी जाकर हुआ. 
मन किया सबकुछ जानने का "उड़ता ", 
सब में जगा दी तुमने इच्छा. 


✍️सुरेंद्र सैनी बवानीवाल


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