बह्र: २१२२ २१२२ २१२
काफ़िया: आना
रदीफ़: छोड़ दे
आग नफ़रत की लगाना छोड़ दे।
खुद को अब बिस्मिल बताना छोड़ दे।
हर तरफ़ फैली सियासत है यहाँ
तू शराफ़त को दिखाना छोड़ दे।
बेवफ़ा तो बावफ़ा होगा नहीं।
याद कर अब दिल जलाना छोड़ दे।
कर हक़ीक़त जो है उसका सामना
ख़्वाब पलकों पर सजाना छोड़ दे।
बेकसी हो बेबसी या बेख़ुदी।
अब तो खुद को बरगलाना छोड़ दे।
देख दामन तू ज़रा अपना कभी।
आइना सबको दिखाना छोड़ दे।
जब पिया हो जाम उत्तम दर्द का।
ख़्वाब में फ़िर मुस्कुराना छोड़ दे।
©@उत्तम मेहता "उत्तम"
०६/२०
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