कुछ मोती कुछ कंकड़-पत्थर
मैं झोली में ले कर आया
कुछ मोती कुछ कंकड़-पत्थर
तुमको यदि स्वीकार नहीं तो
और नहीं कुछ इससे बेहतर |
मैंने वचन दिया था तुमको
गीत तुम्हारे नाम लिखूँगा
जब-जब उगता सूरज देखूँ
दिलबर तुम्हें सलाम लिखूँगा
इसी लिए निकले हैं कैसे
गीत मेरे देखो सज-धज कर |
गीत तुम्हारे अधरों के हैं
गीत तुम्हारे हैं कपोल पर
कटिचुंबी केशों पर मैंने
गीत लिखे मीठे सुबोल पर
गीत लिखे दिन के उजास में
गीत लिखे रातों में जग कर |
मृदु भावों के शब्द-सुमन ले
हार बनाया है गीतों का
और तुम्हारी ही सुधियों से
द्वार सजाया है गीतों का
होगा अति उपकार तुम्हारा
स्वीकारो यदि आगे बढ़ कर |
मैं झोली में ले कर आया
कुछ मोती कुछ कंकड़-पत्थर
तुमको यदि स्वीकार नहीं तो
और नहीं कुछ इससे बेहतर |
-वसंत जमशेदपुरी
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