विष्णु कान्त मिश्र,लखनऊ

मौत के तमाशबीन हो! 


महा शक्तिमान !
अब कहां तुम्हारा अभिमान !
बनाये थे भीषण विनाश के हथियार ,,
करने चले थे दुनिया का संहार !
 ओ भौतिकता के श्रेष्ठ विधाता !
तुम्हे तो मौत से लडना ही नहीं आता !
बस एक अदना सा ,अदृश्य वायरस---
भारी है तुम्हारी मिसाइलो पर ,,,
शब्द से तेज उडते वायुयानो पर,,,
आर्तनाद कर रहे हो बस ! बस!बस !
नही बनाये तुमने मास्क ,,,,
नही है तुम्हारे पास वेंटीलेटर
बस विनाश का ही था एक्सीलेटर ,,,,
कौन सा सम्बोधन दू ,,
तुम्हारी क्या पहचान है,,,
तुम शायद अमरीका हो ,,ईरान हो ,,,!
या फिर इटली या चीन हो !
नही तुम कोई नही
बस----
मौत के तमाशबीन हो !
मौत के तमाशबीन हो!  विष्णु कान्त मिश्र,लखनऊ। 24-03-2020.समय 5.50PM


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