विवेक दुबे"निश्चल

एक अश्क़ समंदर सा ।
 छलका हालतों अंदर सा ।
 मचला पलकों की कोर में,
 उम्मीदों के मंजर सा । 
"विवेक दुबे"निश्चल"@...


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...