*कोरोना का घात बचा लें ।*
मानव की जात बचा लें ।
अपनी औक़ात बचा लें ।
छोड जात धर्म के झगड़े,
अपना इतिहास बचा लें ।
शह मिली है कुदरत से ,
हम अपनी मात बचा लें ।
बजीर बने है हम प्यादे ही ,
हम अपना ताज बचा लें ।
बहुत हुआ अब कहती वसुधा,
दिन उजयरों में रात बचा लें ।
कहलाये श्रेष्ठ प्राणी जग में हम ,
मानव हम अपनी बात बचा लें ।
रहें सभी सावधान संक्रमण से ,
कुछ अपनी मुलाक़ात बचा लें ।
आज रहे यही तब कल होगा ,
कल की खातिर प्रभात बचा लें ।
*न निकले घर से घर की ख़ातिर*
*हम कोरोना का घात बचा लें ।*
क्या होगा न निकले घर से तो ,
मन मे थोड़ा सा एकांत बचा लें ।
मानव की जात बचा लें ।
अपनी औक़ात बचा लें ।
.... *विवेक दुबे"निश्चल"@*...
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