नन्द लाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर सम्पादक काव्यरंगोली

सूर्य का  शौर्य का उत्तरायण शुभ व्यव्हार खुशियों त्यौहार।।                  


गावों में किसान की  खुशहाली का इंतज़ार प्यार   !!               


वासंती वयार में रंगो की कभी फुहार कभी वरसात !!        


गोरी का  प्रियतम प्यार , विश्वाश का रंग हज़ार  !!                 


 राधा कान्हा की होली मस्ती की हस्ती यौवन की   ज्वाला  जवा जज्बे  का ज्वार !!              


कोइ गीला शिकवा शिकायत नहीं इंसान का  इंसानियत के रंगों का प्यार मोहब्बत !!                    


ना कोइ गोरा ना कोइ काला हर चेहरा खुशियों के  रंगो का चेहरा ख़ास !!                            


                      


ढोल मृदंग पखावज बाजे राग फाग बहार झूमे  नाचे गावें फागुन के दिन चार रे होली खेले मना ले !!                                       


रंग से बचे ना कोइ दोस्ती यारी का दस्तूर रिश्तों के दिल के रंगो का इज़हार झाल ले फागुन के दिन चार होली खेल मना ले !!         


 


 धरती  दुल्हन जैसी हर गली मोहल्ला   बिरज में  होली खेलत नंदलाल रे होली खेल मना ले !!        
 लाल ,हरा, पीला, नीला, काला रंगों का  चेहरा , अंगिया, चोली  रंग ही जीवन  होली का त्यौहार ,खुशियों के  रंगो का जीवन संसार !!                              



गले से गले मिलते दिल से दिल मिटता मलाल प्यार आशिर्बाद का  गुलशन का गुलाल है फागुन के दिन चार से होली खेल मनाले !!
 होली की शुभकामनाये


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