भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"पिया मिलन की आस"*
(सरसी छंद गीत)
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विधान - १६ + ११ = २७ मात्रा प्रतिपद, पदांत Sl, युगल पद तुकांतता।
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*पिया मिलन की आस लगी है, पिया मिलन की आस।
प्रीतम मेरे दूर देश हैं, यादें हैं बस पास।
पिया मिलन की आस।।


*बनी बावरी पिया बिना मैं, विरह-विकल का दौर।
उन्हें भूलने के भ्रम में तो, व्यथा बढ़ी है और।।
नैनों से नित नीर बहे पर, बढ़ती जाती प्यास।
पिया मिलन की आस।।


*भयी प्रेम में मैं दीवानी, भार लगे संसार।
फेर लगे हैं विरह-पीर के, मेरे मन के द्वार।
मिले साथ जो अब उनका तो, सदा रहूँगी पास।
पियामिलन की आस।।


*आना-जाना क्रम जीवन का , सका न कोई टाल।
मिलता है वह उसे यहाँ पर, लिखा रखा जो भाल।।
मैं नदिया हर जन्म उन्हीं की, वे सागर हैं खास।
पिया मिलन की आस।।


*फिरूँ भटकती इत-उत उनमत, चैन नहीं मन पाय।
विरही ज्वाला पल प्रतिपल है, और अधिक अकुलाय।।
मेरा तप हर लेगा आतप, मन में है विश्वास।
पिया मिलन की आस।।


*आकुल आत्मा ढूँढ़े सम्बल, समय सिंधु के तीर।
सींचें अब तो प्रीत पयस से, पिय हर लें हर पीर।।
मैं सरिता सिंधु-समाऊँ,
मिटे जन्मों की प्यास।
पिया मिलन की आस।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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