विषय - ग्राम जीवन
शीर्षक- अपना प्यारा गाँव
विधा -कविता
रचनाकार- बाँके बिहारी बरबीगहीया
राज्य -बिहार बरबीघा (पुनेसरा)
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।
चिड़ियों के चहचहाने की कलरव ध्वनि
निम, पिपल,व बरगद के मिलते हैं छाँव
पेड़ो की झुरमुट से काली कोकिल की धुन
पंक्षियो के लिए हैं बनें ढेरों प्याव
सुबहों में परतकाली की करतल ध्वनि
और पनघट पे छोरियों के छमछम करते पाँव
गंगा बहती जहाँ प्रेम की हर घड़ी
ना किसी से कभी कोई करते छलाँव
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यार लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।
गाँव के मंदिर में रोज होता कीर्तन
और गाँव के दलान में फाग चैती की तान
मौजों में लहलहाते हर खेत मिलते
बैलों से दमाही जहाँ करते किसान
तालाब का अमृत जल और कुएँ का मिठास
फूलों की हर कली पर भँवरो की मिठी गान
गाँव की सोंधी मिट्टी और कच्चे मकान
इंद्रधनुष की माला से रोज सजते आसमान
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।
यहाँ बैलों से खेती करते हैं सभी
और अरहर भी मस्ती में इठलाती है
यहाँ तीसी के फूल और सरसों की कली
गाँव की गोरीयों को देख शर्माती हैं
यहाँ सावन की कजरी व रिमझिम फुहार
रहटों की सुहानी लय अपने पास बुलाती है
रंग-बिरंग के हैं फूल पेड़ फल से लदे
हर मुसाफिर को देख नम्र हो जातीं है
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे।।
यहाँ रातों की आहट में जुगनू की जुगजुगाहट
और साँझ को चिरैंयाँ भी करती है अनोर
यहाँ वारिश में मेंढक टरटराते हैं हो
साथ वायस व सियार भी मचाते हैं शोर
चिड़ियों को मिट्टी में लोटपोट होता देख
मन आनंदित होकर हो जाता विभोर
जब भोर में रवि निकलें सजकर
तब गाँव में फिर से हो जाता अंजोर
स्वर्ग सा मेरा गाँव कितना प्यारा लगे।
सुख की पावन धरा जग से न्यारा लगे ।।
🌹सर्वाधिकार सुरक्षित 🌹
🙏बाँके बिहारी बरबीगहीया 🙏
🌹पवित्र प्रेम का दर्शन 🌹
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