*"कहे माँ अब क्या किसको?"*
(कुण्डलिया छंद)
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*तारा आँखों का बना, माता करे निहाल।
आँख दिखाये सुत वही, होगा तब क्या हाल??
होगा तब क्या हाल? लहू से सींचा जिसको।
माँ पर मढ़ता दोष, कहे माँ अब क्या किसको??
कह नायक करजोरि, सहारा करे किनारा।
गिरी मातु पर गाज, बुझा उसका हिय-तारा।।
*आएगा बेटा नहीं, जाने माँ हर बार।
फिर भी अपलक देखती, वृद्धाश्रम का द्वार।।
वृद्धाश्रम का द्वार, बोध मन को वह देती।
सपनो का संसार, सजा अपनो के लेती।।
कह नायक करजोरि, चैन मन कब पाएगा?
देखे उसकी राह, नहीं जो अब आएगा।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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